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Tuesday, 11 January 2011

शाम-ए-ग़म की क़सम-फुटपाथ १९५३

आपको मखमली आवाज़ सुनवाते हैं बहुत दिनों बाद।
तलत महमूद की आवाज़ में ये सदाबहार गीत सुनिए
फिल्म फुटपाथ से। सन १९५३ से ये गीत श्रोताओं को
आनंदित करता आ रहा है। मजरूह के बोलों को सुरों
में पिरोया है खय्याम ने। दिलीप कुमार की ट्रेजेडी किंग
की इमेज में ऐसे गीतों का योगदान बहुत रहा। इस गीत
को अक्सर श्रोता दुखी अवस्था में सुना करते हैं और ऐसा
सुना जाता है कि इसको सुनने के बाद वे अवसाद से बाहर
आ जाते हैं। कुछ कुछ होम्योपैथी के इलाज़ की तरह.....





गीत के बोल:

शाम-ए-ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हम
आ भी जा आ भी जा आज मेरे सनम
शाम-ए-ग़म की क़सम

दिल परेशान है रात वीरान है
देख जा किस तरह आज तनहा हैं हम
शाम-ए-ग़म की क़सम

चैन कैसा जो पहलू में तू ही नहीं
मार डाले न दर्द-ए-जुदाई कहीं
रुत हंसीं हैं तो क्या चाँदनी है तो क्या
चाँदनी ज़ुल्म है और जुदाई सितम

शाम-ए-ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हम
आ भी जा आ भी जा आज मेरे सनम
शाम-ए-ग़म की क़सम

अब तो आ जा के अब रात भी सो गई
ज़िन्दगी ग़म के सेहराव में खो गई
अब तो आ जा के अब रात भी सो गई
ज़िन्दगी ग़म के सेहराव में खो गई
ढूँढती हैं नज़र तू कहाँ हैं मगर
देखते देखते आया आँखों में ग़म

शाम-ए-ग़म की क़सम आज ग़मगीं हैं हम
आ भी जा आ भी जा आज मेरे सनम
शाम-ए-ग़म की क़सम
..............................
Sham-e-gham ki kasam-Footpath 1952

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