Social Icons

Saturday, 2 July 2011

बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम-क़व्वाली

संगीत भी हमारी कुदरत का हिस्सा है। सृष्टि में तरह तरह के
जीव जंतु आवाजें निकालने में सक्षम हैं। कुछ कर्णप्रिय निकालते
हैं तो कुछ कर्कश। जो हमें कर्कश लगती हैं वो उन जीव जंतुओं को
आपस में मधुर संगीत की तरह लगती हैं। हम अपने पैमाने और
हमारे सुन सकने की क्षमता के आधार पर आकलन करते हैं कि
कौनसी ध्वनि अच्छी है व कौन सी बुरी। जिनके बेसिक फंडे क्लीयर
नहीं होते वो अपने पडोसी से पूछ कर धारणा कायम करते हैं। और
जिनको पडोसी से या मित्र से पूछना शान के खिलाफ लगता है वे
दूसरे माध्यम जैसे इन्टरनेट, इत्यादि का सहारा लेते हैं।

इसके पहले की आलेख निबंध में तब्दील हो, कुछ आज की पेशकश
पर नज़र डाली जाये। कुंवारेपन पर या रंडवेपन पर ज्यादा गीत
या ग़ज़ल नहीं उपलब्ध हैं। कुंवारेपन में आशिक मिज़ाज़ी
हो सकती है और नहीं भी हो सकती है। आशिक मिज़ाजी पर बड़े
बड़े फलसफे, थ्योरी और रिसाले आपको मिल जायेंगे, अकेलेपन
वाले कुंवारेपन पर नहीं मिलेंगे। वैसे ही शादीशुदा ज़िन्दगी पर भी
मसाला गीत की शक्ल में कम और निबंध लेख कि शक्ल में ज्यादा
मिला करता है।

प्रस्तुत क़व्वाली अपने समय की मशहूर क़व्वाली है। इसमें हास्य
का पुट भी है। क़व्वाली पुरुष और महिला दोनों ही गा रहे हैं और
अपने कुंवारेपन को दोनों अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं।
बेबाक और बिंदास अंदाज़ वाली इस क़व्वाली के बहुत से मुरीद
हैं जो अलग अलग आयु समूह के हैं। जो भी इसको एक बार सुनता
है वो वाह किये बगैर नहीं रहता ।

प्रस्तुत क्लिप कवर वर्जन की है। इसका मूल संस्करण युसूफ
आज़ाद की आवाज़ में है । अनुमान है कि इसके मूल संस्करण में
ज़नाना आवाज़ रशीदा खातून की ही होगी।



गीत/क़व्वाली के बोल:

जो मम्मी की आँखों के तारे थे हम तुम
जो डैडी के दिल के सहारे थे हम तुम

अपने शहर में सबको प्यारे थे हम तुम
मोहल्ले में सबके दुलारे थे हम तुम
बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम

मैं हीरो था कितनों का शादी से पहले
था हंगामा फ़ितनों का शादी से पहले
बड़ी ब्यूटीफुल थी ज़वानी की रातें
हसीनों से होती थीं रंगीन बातें
मुझे आज तक याद है वो ज़माना
हसीनों के जमघट में पिकनिक मनाना
मगर बन गई जब से तू मेरी दुल्हन
मेरी ज़िन्दगी बन गई एक उलझन
जो शादी हुई तो बजे मेरे बारह
मेरी हर ख़ुशी हो गई नौ दो ग्यारह
तेरी बूढी माँ ने कभी मुझको दांता
कभी बन गया तेरा बाप दिल में काँटा
कभी जान को आ गये तेरे भाई
कभी तेरी बहनों ने की हाथापाई
और उस पर सितम हर बरस एक बच्चा
चलो अब मुझी को चबा जाओ कच्चा
हुआ हर मज़ा किरकिरा आशिकी का
समझ लो जनाज़ा उठा ज़िन्दगी का
परेशान हो तुम और मैं हक्का बक्का
सगाई ये हमको कहीं का ना रखा
ये चमकते दमकते सितारे थे हम तुम

अजी, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
बड़ा लुत्फ़ था जब

ना जब तक हुई थी मेरी तुम से शादी
मैं लाखों के सपनों की थी शाहजादी
मेरे आगे पीछे टहलते थे कितने
जगाती थी जादू उठाती थी फिसले
ना बहनों से डरना ना भैया से डरना
कई बार दिन भर में बनना संवारना
मगर तुमने ऐसा कुछ चक्कर चलाया
मोहब्बत के फंदे में मुझको फंसाया
कभी नाज़ फादर मदर का उठाया
कभी भाई बहनों को मस्का लगाया
भरस तुमसे धोखा बड़ा खा गई मैं
तुम्हारी दुल्हन बन के पछता गई मैं
जो कहती हूँ मैं कि ला दो होंठों की लाली
तो कहते हो फ़ौरन कि है जेब खाली
जो कहती हूँ मैं ला दो पाज़ेब कंगन
तो कहते हो मांजो अभी और बर्तन
पड़ी किस मुए के मैं पल्ले खुदाया
कोई दिल का अरमां निकलने ना पाया
थे खुश ना जब उल्फत के मारे थे हम तुम

बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब

ये घर के मकायल ये बच्चों की झंझट
और उस पर वो दिन रात की तुमसे खटपट
कभी थक थका कर जो दफ्तर से आना
तुम्हारे ही आर्डर पर बच्चे खिलाना
तुम्हारा ये कहना नहीं घर में आटा
मेरी ये इल्तेज़ा मत पकाओ पराठा
तुम्हारा ये कहना के मुन्नी के अब्बा
हुआ ख़त्म घर में जो था घी का डब्बा
हो शैतान की बेटी, तुम भूतों की खाला
मेरे घर का तुमने निकाला दिवाला
मेरी तुमने फैशन से लुटिया डुबो दी
बड़े हो के बच्चों ने भी कब्र खोदी
जो आये बहू और दामाद तौबा
गज़ब आ गई उनकी औलाद तौबा
मेरे पीछे पढ़ते हैं वो हाथ धो कर
बनाया है पोतों नवासों ने जोकर
ना तुम नानी बनतीं ना मैं बनता नाना
ना बनता घर मेरे लिए जेलखाना
जो शादी ना होती तो कुछ भी ना होता
ना तुम मुझ को रोतीं ना मैं तुमको रोता
हुई भूल हमसे जो शादी रचाई
खुद ज़िन्दगी अपनी कडवी बनाई
मोहब्बत के मीठे छुआरे थे हम तुम

ऐ, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब

तुम्हें घर का झंझट जो लगता है भारी
तो बन जाते शौहर के बदले मदारी
जो शौहर बने हो तो नखरे भी झेलो
कहा किसने थे प्यार का खेल खेलो
जो दूल्हा बने हो तो फिर फूंको चूल्हा
झुलाओ नवासों का, पोतों का झूला
मिला ऐसा कंजूस शौहर के तौबा
यूँ फूटा है मेरा मुक़द्दर के तौबा
तुम्हारे दुखों ने ये हालत बना दी
अरे काश मैं तुमसे करती ना शादी
कभी यूँ ना हम दोनों बर्बाद होते
मैं आज़ाद होती तुम आज़ाद होते
कहाँ इस कदर बेसहारे थे हम तुम

अजी बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब ऐ कुंवारे थे हम तुम
सुनो जी, बड़ा लुत्फ़ था जब
..................................
Bada lutf tha jab kunware the hum tum-Qawwali

1 comment:

 
 
www.lyrics2nd.blogspot.com