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Monday, 20 June 2011

तुम रूठ के मत जाना- फागुन १९५८

मधुबाला के नाम से ये गीत मुझे बार बार याद आ जाता है-
मैं सोया अँखियाँ मीचे। इस गीत को सुनते सुनते मुझे भी
नींद आ जाती है। गीत के विडियो ऑडियो दोनों में नशा
सा है। गीत इतनी सौम्यता से गाया और फिल्माया गया है
कि इसकी सादगी से भी नशा सा होने लगता है। एक बार इसे
अवश्य सुनें और देखें।

आज आपको एक और गीत सुनवाते हैं फिल्म फागुन से।
ये भी युगल गीत है आशा और रफ़ी की आवाजों में। कमर
जलालाबादी के सरल बोलों पर धुन तैयार की है संगीतकार
ओ पी नय्यर ने। फागुन फिल्म सन १९५८ की एक बड़ी हिट
फिल्म थी। सफलता में फिल्म के संगीत का भी बहुत बड़ा
योगदान था।

एक कविता पाठ की तरह सा ये गीत विरह गीत के रूप में प्रस्तुत
किया गया है फिल्म में। जैसे फिल्म फागुन के गीत एक दूसरे के
निकट के सम्बन्धी से सुनाई देते हैं वैसे ही इस गीत में रोती हुई
नायिका सुचित्रा सेन की दूर की रिश्तेदार सी दिखाई देती है।





गीत के बोल:


तुम रूठ के मत जाना
तुम रूठ के मत जाना
मुझसे क्या शिकवा दीवाना है दीवाना
मुझसे क्या शिकवा दीवाना है दीवाना

क्यों हो गया बेगाना
क्यों हो गया बेगाना
तेरा-मेरा क्या रिश्ता ये तूने नहीं जाना
तेरा-मेरा क्या रिश्ता ये तूने नहीं जाना

मैं लाख हूँ बेगाना
मैं लाख हूँ बेगाना
फिर ये तड़प कैसी इतना तो बता जाना
फिर ये तड़प कैसी इतना तो बता जाना

फ़ुरसत हो तो आ जाना
फ़ुरसत हो तो आ जाना
अपने ही हाथों से मेरी दुनिया मिटा जाना
अपने ही हाथों से मेरी दुनिया मिटा जाना

तुम रूठ के मत जाना
तुम रूठ के मत जाना
मुझसे क्या शिकवा दीवाना है दीवाना
मुझसे क्या शिकवा दीवाना है दीवाना

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Tum rooth ke mat jaana-Phagun 1958

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