अनजान की बात छिड़ी है तो उनका लिखा हुआ एक और गीत
सुनें जो कर्णप्रिय है और ८० के दशक से है। ये राज बब्बर पर
फिल्माया गया है। राज बब्बर उन दिनों नवागंतुकों की कतार
में शामिल थे। बाद में उन्होंने अपना अलग मुकाम बना लिया।
फ़िल्में इतनी बन चुकी हैं की किस किस का नाम और विवरण
याद रखा जाए। ये समस्या लगभग सभी संगीत प्रेमियों को आती
है। मैं तो ये भी भूल चुका था कि इस फिल्म में राज बब्बर के साथ
पूनम ढिल्लों हैं। फिल्म का नाम है आपस की बात। इसमें संगीत
अन्नू मलिक का है, चौंक गए ना। जी हाँ अन्नू मलिक स्वयं अपने
संगीत पर नज़र डालते होंगे तो चौंक जाते होंगे। उन्होंने हमेशा
समय समय पर श्रोताओं को चकित किया है। उसकी एक वजह
साफ़ है-जड़ें मजबूत हैं। सरदार मलिक पुत्र होने का कुछ तो फ़ायदा
होना चाहिए ना। ये बात और है कि उन्होंने कई ऐसी ऊंची मंजिलें तय
कर ली है आज, जिसके बारे में उनके पिता शायद सपने ही देखा करते
होंगे। अन्नू मालिक ने अपनी गायक बनने की हसरत भी पूरी
कर ली।
गीत किशोर कुमार का गाया हुआ है और राज बब्बर को किशोर कुमार
के १-२ गीत ही मिले होंगे परदे पर होंठ हिलाने के लिए। ये निस्संदेह
अन्नू मलिक की एक बेहतर रचना है।
गीत के बोल:
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे,
दोनों आलम में लाजवाब लगे
दिन को देखूं तो आफताब लगे,
शब् को देखूं तो माहताब लगे
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे
दोनों आलम में लाजवाब लगे
रोज मिलते हो पर नहीं मिलते,
ऐसा मिलना भी मुझको ख्वाब लगे
पढ़ता रहता हु तेरी सूरत को,
तेरी सूरत मुझे किताब लगे
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे
दोनों आलम में लाजवाब लगे
तेरी आँखों की मस्तियाँ तौबा,
मुझको छलकी हुयी शराब लगे
जब भी चमके घटा में बिजली,
मुझको तेरा ही वो शबाब लगे
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे
दोनों आलम में लाजवाब लगे
तुझको देखूं तो किस तरह देखूं,
रुख पे किरणों के सौ नकाब लगे
प्यार शायद इसी को कहते हैं,
एक मुझसे ही क्यों हिजाब लगे
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे
दोनों आलम में लाजवाब लगे
Wednesday, 24 November 2010
तेरा चेहरा मुझे गुलाब लगे-आपस की बात १९८१
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