मजरूह के लिखे संवेदना को झंझोड़ने वाले गीतों में से एक है फ़िल्म
गोमती के किनारे से लता मंगेशकर का गाया हुआ ये गीत। मीना कुमारी
की इस अन्तिम फ़िल्म का निर्देशन सावन कुमार टाक ने किया था, जनता
को देखने को नहीं मिली। अब ज़रूर इस फिल्म की सी डी, डी वी डी मिलने
लगी है। मौका मिले तो एक बार अवश्य देखिएगा इसे।
लखनऊ शहर गोमती नदी के किनारे बसा हुआ है. इस फिल्म की कथा
कुछ कुछ यही इंगित करती है कि इस शहर की ही एक कहानी है ये.
लखनऊ की संस्कृति से मुजरा शब्द अछूता नहीं रहा कभी। तवायफ़ और
उनके नृत्य संगीत इत्यादि पर प्रकाश डालता जनादेश का एक लेख ज़रूर
पढ़ें- पहले बदनाम, फिर गुमनाम
गीत आदम जात के दोमुंहेपन पर करारा तमाचा सा है। आदमी के नंगेपन
की इन्तेहा ये है कि वो जिस जगह से इस नश्वर संसार में प्रकट होता है,
सयाना होने पर बार बार वहीँ जाना चाहता है। प्रकट होने के वक्त के कष्ट
को वो भूल कर उन गलियारों में वो आनंद ढूँढने लगता है। हवस के अन्धों
को रिश्ते, समाज रीति-रिवाज सब दिखलाई देने बंद हो जाते हैं। अपना
खुद का घर तो ऐसे लोगों का अपवाद होता है और वे पैसे के बल पर घर
से बाहर कोई भी बदतमीजी करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं। मर्यादा और
परंपरा की दुहाई देने वाले बाहर निकल कर खुद अनियंत्रित और अमर्यादित
हो जाते हैं । सामाजिक ढांचे को सबसे ज्यादा क्षति साधन समर्थ और संकीर्ण
मानसिकता वाले लोग पहुंचाते हैं। गीत के अंतिम अंतरे में इसी बात पर
गौर किया गया है।
कोठे पर बैठे कलाकारों में आप आई. एस. जौहर को आसानी से पहचान
पाएंगे।
गाने के बोल:
आज तो मेरी हंसी उडाई
जैसे भी चाह पुकारा
आज तो मेरी हंसी उडाई
जैसे भी चाह पुकारा
कल जो मुझे इन गलियों में लाया
वो भी था हाथ तुम्हारा
आज तो मेरी हंसी उडाई
जैसे भी चाह पुकारा
लुटे यहाँ चमन अंधेरों ने
बिके यहाँ बदन अंधेरों में
लुटे यहाँ चमन अंधेरों ने
बिके यहाँ बदन अंधेरों में
भूली भटकी इस बस्ती में, हो ओ ओ
रूप की चांदी रात के सोने का व्यापार है सारा
कल जो मुझे इन गलियों में लाया
वो भी था हाथ तुम्हारा
आज तो मेरी हंसी उडाई
जैसे भी चाह पुकारा
सोचा कभी मैं भी हूँ एक इंसान भी
मैं भी कभी बहन भी हूँ कभी माँ भी
सोचा कभी मैं भी हूँ एक इंसान भी
मैं भी कभी बहन भी हूँ कभी माँ भी
तुम तो प्यासी प्यासी ऑंखें ले के, हो ओ ओ
करने को आये मेरे लबों पर मेरे लहू का नज़ारा
कल जो मुझे इन गलियों में लाया
वो भी था हाथ तुम्हारा
आज तो मेरी हंसी उडाई
जैसे भी चाह पुकारा
सबको गुनाहों में मगन देखा
देखा शरीफों का चलन देखा
सबको गुनाहों में मगन देखा
देखा शरीफों का चलन देखा
सबकी इनायत हाय देखी मैंने, हो ओ ओ
मेरे ही दिल के टुकड़े को मेरा आशिक कह कर पुकारा
कल जो मुझे इन गलियों में लाया
वो भी था हाथ तुम्हारा
..................................
Aaj to meri hansi udaai-Gomti ke kinare 1972
Monday, 25 July 2011
आज तो मेरी हँसी उडाई-गोमती के किनारे १९७२
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment