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Saturday, 16 July 2011

दिन ढल जाए हाय रात ना जाए-गाईड १९६५

कुछ गीत कठिन होना भी ज़रूरी हैं. अगर हर गीत आम आदमी
गुनगुनाते-गुनगुनाते गाने लग जाए तो पार्श्व गायन के लिए लंबी
कतार लग जायेगी. सुनने में सरल सा लगता ये गीत तो ऐसा है
कि मंजे हुए गायक भी इसे गाते समय डगमगा जाते हैं और इस
गीत की खूबी ये है कि संगीत के बिना इसको गुनगुनाने पर कुछ
रिक्तता का आभास होता है. इस तरीके से बना है ये कि बिना
संगीत के टुकड़ों के ये न तो गुनगुनाने में अच्छा लगता है और
शायद सुनने में भी न लगे. इसको ही कहते हैं बोल और धुन का
एक दूसरे से कस कर बंधा होना.

प्रस्तुत गीत है फिल्म गाईड से जो हिंदी फिल्म सिनेमा इतिहास का
एक मील का पत्थर है. शैलेन्द्र के लिखे गीत को स्वरबद्ध किया है
संगीतकार सचिन देव बर्मन ने. इस गीत को कातिल बनाने में
सैक्सोफोन ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है जो कि मनोहारी सिंह ने
बजायी है. उम्मीद है इसमें बजी बांसुरी ज़रूर प्रसिद्द बांसुरी वादक
हरिप्रसाद चौरसिया की ही होगी.




गीत के बोल:

आ, आ आ आ आ आ
दिन ढल जाए हाय रात ना जाए,
तू तो ना आए तेरी याद सताए
दिन ढल जाए हाय रात ना जाए,
तू तो ना आए तेरी याद सताए
दिन ढल जाए

प्यार में जिनके सब जग छोड़ा,
और हुए बदनाम,
उनके ही हाथों हाल हुआ ये,
बैठे हैं दिल को थाम,
अपने कभी थे, अब हैं पराए

दिन ढल जाए हाय रात ना जाए,
तू तो ना आए तेरी याद सताए
दिन ढल जाए

ऐसी ही रिमझिम, ऐसी फुहारें,
ऐसी ही थी बरसात,
खुद से जुदा और जग से पराए,
हम दोनों थे साथ,
फिर से वो सावन अब क्यों ना आए

दिन ढल जाए हाय रात ना जाए,
तू तो ना आए तेरी याद सताए
दिन ढल जाए

दिल के मेरे पास हो इतने,
फिर भी हो कितने दूर,
तुम मुझसे, मैं दिल से परेशान,
दोनों हैं मजबूर,
ऐसे में किसको कौन मनाए

दिन ढल जाए हाय रात ना जाए,
तू तो ना आए तेरी याद सताए
दिन ढल जाए
..........................
Din dhal jaaye-Guide 1964

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