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Saturday, 20 November 2010

शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया-आखिर क्यों १९८५

'क' शब्द से राकेश रोशन का पुराना नाता लगता है ।
इस फिल्म के नाम में भी एक शब्द है जो 'क' से
शुरू होता है। उनके ससुर जे. ओमप्रकाश को 'अ'
अक्षर से विशेष लगाव था। इस फिल्म के निर्देशक
जे. ओमप्रकाश ही हैं। ये एक सफल फिल्म है। इसके
गीत भी फुरसत और तबियत से तैयार किये गए हैं ।
गीत के बोल, धुन और स्मिता का अभिनय सभी कुछ
लाजवाब है। स्मिता पाटिल ने भारतीय नारी की छबि
खूबसूरत ढंग से निखारी थी हिंदी फिल्मों में। "कोई जब
तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे" , "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में"
वाले इन्दीवर साहब के बोल हैं इसमें और सुर दिए हैं
स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर ने।





गीत के बोल :

आ आ आ, आ आ आ, आ आ
हूँ ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं ऊं

शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
अबहूँ न आये मोरे श्याम संवरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
अबहूँ न आये मोरे श्याम संवरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया

हो ओ ओ ओ
हा आ आ आ

अनछुए होंठ मेरे खोये खोये नैन मेरे
गूंजते हैं पर्णों में मधुर मधुर बोल तेरे
मेरे साथ बैन करे, हो
मेरे साथ बैन करे मोरी अटरिया

शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया

सोलह बरस बीते गिन गिन रतियाँ
पी से मिलन चली संग की सखियाँ
अब तो ले लो पिया, हो
अब तो ले लो पिया आ के खबरिया

शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया

प् नि सा रे नि सा रे नि सा रे नि ध प्
आ आ आ आ आ आ आ आ आ

शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
अबहूँ न आये मोरे श्याम संवरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया
शाम हुई चढ़ आई रे बदरिया

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