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Wednesday, 29 June 2011

न तुम बेवफ़ा हो-एक कली मुस्काई १९६८

ज़िन्दगी के सफ़र में कुछ ऐसे मुसाफिर मिलते हैं जो
बहुत दूर साथ चलने का वादा/ड्रामा कर के किसी मोड़ पर
बिछड़ जाते हैं या गधे के सर से सींग की तरह गायब हो
जाते हैं।

अगर अलगाव या बिछुड़न के लिए परिस्थितियां जिम्मेदार
होती हैं तो मामला ५०:५० अन्यथा प्रस्तुत गीत की पंक्तियाँ
दोहराते हुए दिल को ढाढ़स बंधाना पढता है। गीत में नायक
के जाते ही नायिका अपने दिल का गुबार बाहर निकाल रही
है।

मदन मोहन के रचे लता के गाये गीतों में से तकरीबन ५०
गीत मुझे बेहद पसंद हैं। ये उनमें से एक है। इसे मुझे सुनते
हुए कई साल हो गये ।

गीत में मीरा नामक अभिनेत्री दिखाई दे रही हैं। राजेंद्र कृष्ण
के बोलों को आवाज़ दी है लता मंगेशकर ने।



गीत के बोल:


न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं
न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं
मगर क्या करें अपनी राहें जुदा हैं

न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं

जहाँ ठंडी-ठंडी हवा चल रही है
जहाँ ठंडी-ठंडी हवा चल रही है
किसी की मोहब्बत वहाँ जल रही है
ज़मीं-आसमां हमसे दोनों खफ़ा हैं

न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं

अभी कल तलक़ तो मुहब्बत जवाँ थी
अभी कल तलक़ तो मुहब्बत जवाँ थी
मिलन ही मिलन था जुदाई कहाँ थी
मगर आज दोनों ही बेआसरा हैं

न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं

ज़माना कहे मेरी राहों में आ जा
ज़माना कहे मेरी राहों में आ जा
मुहब्बत कहे मेरी बाँहों में आ जा
वो समझें ना मजबूरियाँ अपनी क्या हैं

न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं

मगर क्या करें अपनी राहें जुदा हैं
न तुम बेवफ़ा हो न हम बेवफ़ा हैं
.............................
Na tum bewafa ho-Ek Kali Muskayi 1968

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