कुछ चीज़ों का कुदरती साथ होता है, कुछ का होता अदरकी साथ और
कुछ का हम जबरन बना दिया करते हैं। चोली दामन का साथ एक
जग-जाहिर उदाहरण है। बम्बई के वड़ापाव की ही बात ली जाये। बिना
वडे का पाव या बिना पाव का वडा बम्बई, जिसे हम अब मुंबई कहते हैं,
के निवासियों को थोड़ा अटपटा सा लगता है। ये तो क्षेत्र विशेष का
उदाहरण हो गया।
एक उदाहरण और-कुछ लोगों का मानना है कि मौसंबी के जूस में
ग्लूकोज़ का होना ज़रूरी है। एक ज़माना था जब लगभग हर बीमार
को मौसंबी के रस में ग्लूकोज़ मिला के दिया जाता। अब जो जनता
शौकिया तौर पर बाज़ार में जा कर जूस पीती उसे ग्लूकोज़ नहीं
मिलता तो पूछती-इसमें गुल्लू-कोज़ नहीं मिलाया ?
फिल्मों में भी ऐसे आवश्यक तत्त्व होते हैं। आज आपको अमिताभ की
फिल्म का एक गीत सुनवाते हैं इसमें जो कलाकार परदे पर गीत गा रहा
है उसका नाम है-राम शेट्टी। ये जनाब आपको ८० के दशक की लगभग
हर उस फिल्म में जिसमें अमिताभ ने काम किया है, मिल जायेंगे।
एक समय था जब अमिताभ की फिल्मों में महमूद होते, कभी उनकी
फिल्मों में मुकरी होते। आज आप महसूस करेंगे उनके साथ दो शख्सों
की उपस्थिति-परेश रावल और शरद सक्सेना। समय समय पर ऐसे
आवश्यक तत्वों में बदलाव होता रहा। अमिताभ के पूरे फ़िल्मी
कैरियर को अगर ४ खण्डों में बांटा जाये तो हर दौर की कुछ अलग
विशेषताएं आपको मिलेंगी। इसपर विस्तृत चर्चा फिर कभी।
गीत सुना जाये जिसे लिखा है मजरूह सुल्तानपुरी ने और धुन बनाई
राहुल देव बर्मन ने। गायक कलाकार हैं मोहम्मद रफ़ी।
गीत के बोल:
कौन किसी को बांध सका
हाँ, कौन किसी को बाँध सका
सय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
कौन किसी को बांध सका
सय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
अंगड़ाई ले कर के जागी है नौजवानी
अंगड़ाई ले कर के जागी है नौजवानी
सपने नये हैं और ज़ंजीर है पुरानी
पहरेदार फ़ांके से
बरसो राम धड़ाके से
होशियार भई सब होशियार
रात अंधेरी, रुत बरखा और
ग़ाफ़िल सारा ज़माना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
कौन किसी को बांध सका
सय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
हो ओ ओ ओ हो ओ हो ओ
खिड़की से रुकता है झोंका कहीं हवा का ?
हिल जायें दीवारें ऐसा करो धमाका
खिड़की से रुकता है झोंका कहीं हवा का ?
हिल जायें दीवारें ऐसा करो धमाका
बोले ढोल ताशे से
बरसो राम धड़ाके से
होशियार भई सब होशियार
देख के भी न, कोई देखे
ऐसा कुछ रंग जमाना है
तोड़ के पिंजरा, एक न एक दिन, पंछी को उड़ जाना है
कौन किसी को बाँध सका, सय्याद तो इक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा, एक न एक दिन, पंछी को उड़ जाना है
कह दो शिकारी से फंदा लगा के देखे
कह दो शिकारी से फंदा लगा के देखे
अब जिसमें हिम्मत हो रस्ते में आ के देखे
निकला शेर हाँके से
बरसो राम धड़ाके से
होशियार भई सब होशियार
जाने वाले को जाना है और
सीना तान के जाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
कौन किसी को बांध सका
सय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
कौन किसी को बांध सका
सय्याद तो एक दीवाना है
तोड़ के पिंजरा एक न एक दिन
पंछी को उड़ जाना है
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Kaun kisi ko bandh saka-Kaalia 1981
Monday, 27 June 2011
कौन किसी को बांध सका-कालिया १९८१
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