"प्यासा हूँ मगर लोग समझते हैं पिया सा"- वाह साहब क्या पंक्तियाँ
हैं पिछले गीत की। आप सभी ने ये ज़रूर एक ना एक बार सुना होगा
कि कोई शराबी नाली में पड़ा है और कुत्ता उसका मुंह चाट रहा है।
मैंने २-३ बार देखा भी है। कुछ रोज़ पहले ध्यान से देखने पर
पाया कुत्ता उस व्यक्ति के होंठ भी चाट के साफ़ कर रहा है। अमूमन
ऐसे दृश्य केवल वहीँ देखे जा सकते हैं जहाँ कुत्ते पाले होते
हैं और कुत्तों को घर के सदस्य की तरह रखा जाता है। वैसी
जगहों पर उनकी चाटा-चाटी को भी खुली छूट होती है।
प्रस्तुत गीत एक प्रसिद्ध फिल्म दाग से है। सन १९५२ की दाग।
१९५२ की दाग शैलेन्द्र के गीतों के लिए याद की जाती है
तो सन १९७३ वाली साहिर के गीतों के लिए। प्रस्तुत गीत में
नायक कुत्ते को निमंत्रण देता सा प्रतीत होता है-आ जा मेरे
पीछे पीछे, मैं आगे चल के गिरने वाला हूँ उसके बाद तेरी जो
मर्ज़ी हो करना। इस फिल्म के लिए नायक को फ़िल्म फेयर
पुरस्कार मिला था। नायक को तो आप पहचान ही गए होंगे।
गीत गाया है तलत महमूद ने और इसकी धुन तैयार की है
शंकर जयकिशन ने।
गीत के बोल:
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ ले अब कोई घर नया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
गम की दुनिया से दिल भर गया
ढूंढ ले अब कोई घर नया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
चल जहां गम के मारे ना हों
झूठी आशा के तारे ना हों
चल जहां गम के मारे ना हों
झूठी आशा के तारे ना हों
झूठी आशा के तारे ना हों
इन बहारों से क्या फ़ायदा
जिस में दिल की कली जल गई
ज़ख्म फिर से हरा हो गया
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
चार आंसू कोई रो दिया
फेर के मुंह कोई चल दिया
चार आंसू कोई रो दिया
फेर के मुंह कोई चल दिया
फेर के मुंह कोई चल दिया
लुट रहा था किसी का जहाँ
देखती रह गई ये ज़मीन
चुप रहा बेरहम आसमान
ऐ मेरे दिल कहीं और चल
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Ae mere dil kahin aur chaal(Talat)-Daag 1952
Saturday, 14 May 2011
ऐ मेरे दिल कहीं और चल २- दाग १९५२
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