ज़िगर मुरादाबादी की कुछ पंक्तियाँ यूँ हैं:
ये इश्क नहीं आसान बस इतना समझ लीजिये
एक आग का दरिया है बस डूब के जाना है।
ये फलसफा ज़िन्दगी के ऊपर भी आसानी से लागू होता है।
आपको गायक अनवर हुसैन का एक लाजवाब गीत सुनवाया
था फिल्म "हम हैं लाजवाब" से। मोहम्मद रफ़ी के अवसान के
बाद हिंदी फिल्म संगीत क्षेत्र में पैदा हुए बड़े रिक्त स्थान को कुछ
हद तक भरने का भरोसा पैदा करने वाले गायक ने कुछ गीत
गाये और गुमनामी के अंधेरों में कहीं खो गया। शायद गायक
की अपनी शर्तों पर काम करने का जूनून होने की वजह से ये
गत बनी या समय का फेर कहिये इसको। मामला चाहे जो भी
हो उनसे कमतर प्रतिभा वाले गायक सामने आये या लाये गए
और उन गायकों ने वो सब हासिल कर लिया जिसकी शायद
अनवर अपने फुर्सत के क्षणों में कल्पना मात्र ही कर पाते होंगे।
इसे विडम्बना ही कहिये कि जिस कलाकार को फिल्मों में गाते
सुना जाना चाहिए वो बीयर बार में सोम-रस प्रेमियों का दिल
बहला रहा है। उस कलाकार कि आवाज़ आम श्रोता कि पहुँच
में नहीं है क्यूंकि उनके लिए सार्वजनिक मंच उपलब्ध नहीं है.
प्रश्न ये है कि क्या सुनने वालों या संगीत पेमियों में से पहले कोई
ऐसा नहीं था जिसे गायक की इस गति पर ज़रा भी सहानुभूति
नहीं हुई हो। सवाल अंतरात्मा के जागने का है। समय का फेर
इसी को कहा जाता है। खैर देर आयद दुरुस्त आयद के साथ
गायक के लिए शुभकामनाएं। उन्हें और काम मिले और उनकी
प्रतिभा का paryapt दोहन हो चाहे टी वी पर हो या फिल्मों में।
सच्चे संगीत प्रेमी उन्हें फिर से सुनना चाहते हैं।
जब सितारे गर्दिश में हो तो आपके प्रशंसक ही आपको बिना पहचाने
धक्का मार के निकाल जाते हैं।
अंग्रेजी का दैनिक और उसके रिपोर्टर बधाई के पात्र हैं जिनके प्रयासों
से एक कलाकार को वापस सुनहरे दौर में लौटने का मौका मिल सकता
है। पत्रकारों को ऐसी दैवीय प्रेरणा देने वाली शक्ति को नमन। आइये सुनें
अनवर की आवाज़ में एक ग़ज़ल सुनें जो फिल्म "ये इश्क नहीं आसान"
से है। इस गीत को लिखा आनंद बक्षी ने और संगीत तैयार किया है
लक्ष्मी प्यारे ने। अमिताभ बच्चन की फिल्म कालिया बनाने वाले
फिल्मकार टीनू आनंद ने इस फिल्म का निर्देशन किया है। फिल्म ने
अच्छा व्यवसाय नहीं किया मगर प्रयास सराहनीय कहा जायेगा। फिल्म
का संगीत सुनने लायक है।
गीत के बोल:
मेरे ख्यालों की रहगुज़र से
वो देखिये वो गुज़र रहे हैं
मेरी निगाहों के आसमान से
ज़मीन-ए-दिल पर उतर रहे हैं
ये कैसे मुमकिन है हमनशीनों
ये कैसे मुमकिन है हमनशीनों
के दिल को दिल की खबर ना पहुंचे
के दिल को दिल की खबर ना पहुंचे
उन्हें भी हम याद आते होंगे
के जिनको हम याद कर रहे हैं
मेरे ख्यालों की रहगुज़र से
वो देखिये वो गुज़र रहे हैं
इसी मुहब्बत की रोज़-ओ-शब् हम
इसी मुहब्बत की रोज़-ओ-शब् हम
सुनाया करते थे दास्तानें
सुनाया करते थे दास्तानें
इसी मुहबत का नाम लेते हुवे
भी हम आज डर रहे हैं
मेरे ख्यालों की रहगुज़र से
वो देखिये वो गुज़र रहे हैं
चले हैं थोड़ी ही दूर तक बस
वो साथ मेरे सलीम फिर भी
ये बात मैं कैसे मैं भूल जाऊं
के हम कभी हमसफ़र रहे हैं
मेरी निगाहों के आसमान से
ज़मीन-ए-दिल पर उतर रहे हैं
मेरे ख्यालों की रहगुज़र से
वो देखिये वो गुज़र रहे हैं
Thursday, 2 December 2010
मेरे ख्यालों की रहगुज़र-ये इश्क नहीं आसान १९८४
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