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Friday, 10 December 2010

चलो एक बार फिर से-गुमराह १९६३

मिलने के पहले भी तो हम अजनबी थे। मिलने के
बाद फिर से अजनबी बन जाएँ। साहिर लुधियानवी
ने प्रेम को नए नए कोण से देख लिया। जितने प्रमाणिक
उनके गीत लगते हैं प्रेम के मामले में उतने दूसरों के
नहीं-ऐसा मैंने एक साहिर प्रेमी को कहते सुना। मैं
भी सोच में पड़ गया की ऐसा क्या क्या है साहिर के
रोमांटिक गीतों में कि जनता तारीफों के पुल बांधती
नहीं अघाती ।

तो जनाब उनके गीतों में कुछ कटु सच्चाई की मिलावट
भी पायी जाती है। केवल कल्पना ही नहीं उन्होंने
अपने अनुभव भी निचोड़ डाले हैं गीतों में। साहिर की
लिखी नज़्म प्रस्तुत है फिल्म गुमराह से। इसमें भी
उन्होंने -वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो
मुमकिन उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा,
यहाँ भूलने की जगह छोड़ना शब्द इस्तेमाल किया गया
है, क्यूंकि भूलना तो संभव ही नहीं है , या रिश्ते जब
बोझ बन जाते हैं तो उन्हें तोडना ही बेहतर है- का सन्देश
देते हैं।

प्रेम त्रिकोण पर आधारित ये फिल्म सन १९६३ में सिनेमा
घरों में प्रकट हुई थी। प्रस्तुत गीत के लिए महेंद्र कपूर
को सर्वश्रेष्ठ गायक के फिल्मफैयर पुरस्कार से नवाजा
जा चूका है। उस साल की बाकी दो प्रविष्टियों में जो गीत
थे वो इस प्रकार से हैं -१) मेरे महबूब तुझे मेरी मोहब्बत
की कसम फिल्म मेरे महबूब से रफ़ी का गाया हुआ और
२) जो वादा किया वो-ताजमहल से लता का गाया हुआ।
साहिर को फिल्म ताजमहल के गीत लेखन के लिए
फिल्मफैयर पुरस्कार दिया गया। संगीतकार रवि के
लिए भी ये फिल्म फायदेमंद साबित हुई। बी आर चोपड़ा
की आगे आनेवाली अधिकांश फिल्मों में आपको
संगीतकार रवि का संगीत मिलेगा।



गीत के बोल:

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों

ना मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
ना तुम मेरी तरफ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
ना मेरे दिल की धड़कन लडखडाये मेरी बातों में
ना ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों

तुम्हें भी कोई उलझान रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं, की यह जलवे पराये हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माज़ी की
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माज़ी की
तुम्हारे साथ भी गुजरी हुई रातों के साये हैं

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों

तार्रुफ़ रोग हो जाए तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाए तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा

चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
चलो एक बार फिर से, अजनबी बन जाये हम दोनों
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Chalo ek baar fir se ajnabi ban jaayen ham dono-Gumrah 1963

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