Social Icons

Friday, 3 December 2010

लग जा गले के फिर ये हंसी रात-वो कौन थी १९६४

राज खोसला की सस्पेंस फिल्म से अगला गीत पेश है।
ये फिल्म भी बहुत से पहाड़ी वाले दृश्यों से भरी पड़ी है।
अब पहाड़ी है तो राग पहाड़ी पर आधारित कोई गीत भी
होना चाहिए। है जी है, एक गीत और वो भी सुपर डुपर
हिट गीत। राजा मेहँदी अली खान के बोल और मदन
मोहन का संगीत, परदे पर साधना और परदे के पीछे
लता मंगेशकर की आवाज़। इसका फिल्मांकन भी
ज़ोरदार है। अपनी नायिकाओं को किस तरह बला की
खूबसूरत दिखाया जाए ये फलसफा राज खोसला के गीतों
से सीखे कोई। मदन मोहन की इस रचना का मैं भी बड़ा
दीवाना हूँ । उल्लेखनीय है कि ये गीत सम्पादित स्वरुप
में उपलब्ध है फिल्म के एल. पी. रिकोर्ड पर। फिल्म वाला
वर्जन थोडा लम्बा है और इसमें संगीत के अंश कुछ
ज्यादा हैं। 'लग जा गले' कहने का इससे खूबसूरत अंदाज़
शायद ही आपको देखने को मिले।

इसका आधुनिक और ठेठ तरीका यूँ होगा, नायिका नायक
से बोलेगी -ओये सोणियो यूँ घूर घूर के क्या देख रहे हो,
गले लग जा, ये नाईट शिफ्ट फिर नहीं होगी , गले नहीं
लगा तो तो भूत बन के तेरे गले पड़ जाऊंगी। गीत में
निवेदन की जगह हुक्म होगा। ऐसा होने की संभावना
थोड़ी कम है क्यूंकि रीमिक्स वालों के लिए मदन मोहन
की रचनायें सरदर्द हैं।



गीत के बोल:

लग जा गले हूँ हूँ हूँ , हसीं रात हं हं हं

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले से, ऐ

हमको मिली हैं आज, ये घड़ियाँ नसीब से
हमको मिली हैं आज, ये घड़ियाँ नसीब से
जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से
फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो
फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले से, ऐ

पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार-बार
पास आइये कि हम नहीं आएंगे बार-बार
बाहें गले में डाल के हम रो लें ज़ार-ज़ार
आँखों से फिर ये प्यार की बरसात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो
लग जा गले कि फिर ये हसीं रात हो न हो
शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो

लग जा गले से, ऐ

No comments:

Post a Comment

 
 
www.lyrics2nd.blogspot.com