हम जनता को उनकी पसंद से भी पहचानते हैं। किसी व्यक्ति
के मूड का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है इसका एक उदाहरण
देता हूँ।
एक सज्जन को मुकेश के गीत पसंद हैं। फिल्म आनंद का ये मशहूर
गीत -"कहीं दूर जब दिन ढल जाए" इन महाशय ने अपनी कालर ट्यून
बना रखा था। जब भी उनको मोबाइल पर रिंग मारो ये गीत सुनाई देता
था। इससे मूड फ्रेश हो जाया करता। ये सिलसिला बहुत दिन तक चला ।
साल भर बाद उनकी कालर ट्यून बदल गई। हिमेश रेशमिया का कोई गीत
उन्होंने कालर ट्यून बना के लगा डाला। उसी के साथ उनके व्यवहार में
बदलाव भी दिखा। उनकी आँखों में अब अक्सर सूअर का बाल दिखाई देता।
इस फेनोमिना की क्या वजह हो सकती है मेरी समझ के बाहर है।
खैर, ये गीत सुनिए आज, जो एक सदाबहार गीत है और फिल्म जगत के
काका अर्थात राजेश खन्ना इसको परदे पर गा रहे हैं। योगेश के लिखे गीत
के लिए धुन बनाई है सलिल चौधरी ने।
गीत के बोल:
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आये
मेरे ख्यालों के आंगन में
कोई सपनों के दीप जलाये
दीप जलाये
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आये
कभी यूँ ही जब हुयीं बोझल साँसें
भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही ऑंखें
कभी यूँ ही जब हुयीं बोझल साँसें
भर आई बैठे बैठे जब यूँ ही ऑंखें
कभी मचल के प्यार से चल के
छुए कोई मुझे पर नज़र ना आये
नज़र ना आये
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आये
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं से निकाल आयें जन्मों के नाते
कहीं तो ये दिल कभी मिल नहीं पाते
कहीं से निकाल आयें जन्मों के नाते
है मीठी उलझान बैरी अपना मन
अपना ही हो के सहे दर्द पराये
दर्द पराये
कहीं दूर जब दिन ढल जाए
सांझ की दुल्हन बदन चुराए
चुपके से आये
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे
दिल जाने मेरे सारे भेद ये गहरे
हो गए कैसे मेरे सपने सुनहरे
ये मेरे सपने यही तो हैं अपने
मुझसे जुदा ना होंगे इनके ये साये
इनके ये साये
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Kahin door jab din dhal jaaye-Anand 1970
Saturday, 20 November 2010
कहीं दूर जब दिन ढल जाए-आनंद १९७०
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