पिछला गीत आपने सुना पिता का, अब पुत्र की एक मधुर
रचना सुन लीजिये। घरेलू सी दिखने वाली अभिनेत्री नंदा पर ये
गीत फिल्माया गया है। नंदा ६० के दशक में दिखाई देना शुरू हुयीं
और ७० के पूर्वार्ध तक नियमित रूप से दिखती रही फिर अचानक
से गायब हो गयीं। इस फिल्म में वे शायद संजीव कुमार की पत्नी
की भूमिका कर रही हैं। गीत आनंद बक्षी ने लिखा है और इसे लता
मंगेशकर गा रही हैं। हल्का सा ईको प्रभाव इस गीत को खूबसूरती
प्रदान कर रहा है। बदरवा बोलते-बोलते आवाज़ गूंजती हुई हवा
में घुल जाती है।
गीत के बोल:
कजरे बदरवा रे
कजरे बदरवा रे
मर्ज़ी तेरी है क्या ज़ालिमा
ऐसे न बरस जुल्मी
कह न दूं किसी को मैं बालमा
कजरे बदरवा
कहीं गिर जाए न बिंदिया
कहीं उड़ जाए न निंदिया
हो ओ, कहीं गिर जाए न बिंदिया
कहीं उड़ जाए न निंदिया
काली काली आने वाली
काली काली आने वाली
बरखा की रात है
कजरे बदरवा
रिमझिम वाली चुनरिया
ओढ़े हुए आई बदरिया
हो, रिमझिम वाली चुनरिया
ओढ़े हुए आई बदरिया
झूमें ऐसे गोरी जैसे
झूमें ऐसे गोरी जैसे
सजना के साथ में
कजरे बदरवा
इस भीगी भीगी हवा ने
कानों में कहा क्या न जाने
हो ओ, इस भीगी भीगी हवा ने
कानों में कहा क्या न जाने
मैं शरमाई मैं घबरायी
मैं शरमाई मैं घबरायी
ऐसी कोई बात है
कजरे बदरवा
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Kajre Badarwa re-Pati Patni 1966
Sunday, 21 November 2010
कजरे बदरवा रे-पति पत्नी १९६६
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