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Thursday, 25 October 2012

दीवारों का जंगल-दीवार १९७५

यश चोपड़ा के जाने से हिंदी फिल्म सिनेमा का एक
चैप्टर बंद हो गया है. इस चैप्टर में सफलता के कई
अफ़साने लिखे हुए हैं. प्रगतिशील से परिवर्तनशील सभी
दौरों से गुज़रते हुए उन्होंने दर्शकों के समक्ष कई अनमोल
फ़िल्में पेश कीं.

उनको फिल्म सिनेमा का दर्शक प्रेम कहानियों और प्रेम
त्रिकोणों के लिए ज्यादा जानता है. एक विशिष्ट बात उनके
पूरे फ़िल्मी कैरियर में रही कि उनकी फिल्मों के संगीत का
स्तर बेहतर रहा और संगीत लोकप्रिय रहा. उनके खाते में
फ़िल्मी दुनिया का एक उपकार दर्ज है वो है- महानायक की
दूसरी पारी की सफल शुरुआत करवाना. फिल्म मोहब्बतें
आपको ज़रूर ही अभी तक याद होगी.

चलिए ज़रा लीक से हट कर उनकी निर्देशित एक फिल्म का
गीत सुनते हैं जो ज़रा फिलोसोफिक है. गीत साहिर का लिखा
हुआ है जिसे मन्ना डे ने स्वर दिया है और संगीत तैयार किया
है राहुल देव बर्मन ने.




गीत के बोल:

दीवारों का जंगल जिसका आबादी है नाम
बाहर से चुप चुप लगता है अंदर है कोहराम

दीवारों के इस जंगल में भटक रहे इंसान
अपने अपने उलझे दामन झटक रहे इंसान
अपनी विपदा छोड़ते आये
अपनी विपदा छोड़ते आये कौन किसी के गाम

बाहर से चुप चुप लगता है अंदर है कोहराम

सीने खाली ऑंखें सूनी चेहरों पर हैरानी
सीने खाली ऑंखें सूनी चेहरों पर हैरानी
जितने घने हंगामें इसमें उतनी घनी वीरानी
रातें कातिल सुबहें मुजरिम
रातें कातिल सुबहें मुजरिम, मुजरिम है हर शाम

बाहर से चुप चुप लगता है अंदर है कोहराम
 
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Deewaron ka jangal-Deewar 1975



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