आइये लता के एक श्रेष्ठ दर्दीले गीत पर थोड़ी चर्चा की जाए। गीत के
बोल दर्द की सियाही से निकले से सुनाई पढ़ते हैं। गीत की खूबसूरती
ये है की शुरुआत से पहले हेमंत कुमार की आवाज़ में 'रघुपति राजा राम'
भजन की कुछ पंक्तियाँ हैं । फिल्म का नाम पतिता है और यह फिल्म
अपने समय की काफी बोल्ड विषय वाली फिल्म मानी जाती है थी। एक
पतिता को उचित स्थान दिलाने की जद्दोजहद में लगे नायक से नायिका
गीत के माध्यम से प्रश्न कर रही है जो खुद भी मस्तिष्क में चल रही
कशमकश से परेशां है।
गीत में कहीं भी पतिता शब्द का प्रयोग नहीं किया गया है और नारी
चरित्र के गरिमा को इतनी खूबसूरती से पेश किया गया है की एकबारगी
आपको भी उस चरित्र से जुड़ाव सा महसूस होने लगता है और उसकी पीढ़ा
अपनी लगने लगती है।
ऐसे सरल से मगर मर्मस्पर्शी गीत किस गीतकार की कलम की देन हो सकते
हैं भला-? उषाकिरण पर फिल्माए गए और लता के गाये इस गीत को लिखा
है शैलेन्द्र ने और संवेदना को टटोलती धुन बनाई है शंकर जयकिशन ने.
गीत के बोल:
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
टूटे हुए खिलौनों से प्यार किसलिए
टूटे हुए खिलौनों से प्यार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
बना के जिन्दगानियाँ बिगाड़ने से क्या मिला
मेरी उम्मीद का जहाँ
मेरी उम्मीद का जहाँ उजाड़ने से क्या मिला
आई थी दो दिनों की ये बहार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
ज़रा सी धूल को हज़ार रूप नाम दे दिए
ज़रा सी जान, सर पे सात आसमान दे दिए
बर्बाद जिंदगी का ये सिंगार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
ज़मीन गैर हो गयी ये आसमान बदल गया
हवा के रुख बदल गए
हवा के रुख बदल गए हर एक फूल जल गया
बजते हैं अब ये साँसों के तार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए
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Mitti se khelte ho baar baar kis liye-Patita 1953
Sunday, 17 July 2011
मिटटी से खेलते हो बार बार किसलिए-पतिता १९५३
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