आपने किशोर की आवाज़ में कॉल गर्ल का सदाबाहर गीत सुना कुछ
पोस्ट पहले. अब सुनिए उसी गीत का लता मंगेशकर वाला संस्करण.
नायिका और नायक क्रमशः वही हैं इसमें -जाहिरा और विक्रम. अमर
नायक के चरित्र का नाम है और माया नायिका के चरित्र का. विक्रम
की संवाद अदायगी ऐसी है जैसे कोई परचा पढ़ा जा रहा हो.
नायिका फिल्म में कॉल गर्ल के मिरोल में है. अब नायक की पेशकश से
वो उलझन में पढ़ गयी है. आगे गीत है उसमें क्या होगा देखिये .
गौर फरमाईयेगा कि इसके बोल पुरुष आवाज़ वाले वर्जन से अलग हैं.
मुझे दोनों गीत समान रूप से पसंद हैं. दोनों के ही बोल लाजवाब हैं.
धुन तो एक समान है अतः ज्यादा कसीदाकारी न करते हुए इस पोस्ट
पर इधर ही ब्रेक दे देते हैं.
गीत के बोल:
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
फिर साथ मेरे आओ, ओ ओ ओ ओ ओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
दुनिया से बहुत आगे जिस राह पे हम होंगे
ये सोच लो पहले से हर मोड पे ग़म होंगे
है खौफ ग़मों से तो रुक जाओ, ठहर जाओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
मैं टूटी हुई कश्ती खुद पार लगा लूँगी
तूफ़ान के मौजों की पतवार बना लूँगी
मझधार का डर है तो साहिल पे, ठहर जाओ
उल्फ़त में ज़माने की, हर रस्म को ठुकराओ
दिल और कहीं दे कर तुम चाह बदल डालो
बेहतर तो यही होगा ये राह बदल डालो
दो चार क़दम चल कर मुमकिन है बहक जाओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
फिर साथ मेरे आओ, ओ ओ ओ ओ ओ
उल्फ़त में ज़माने की हर रस्म को ठुकराओ
....................................
Ulfat mein zamane ki-Call Girl 1974
Monday, 18 July 2011
उल्फत में ज़माने की हर रस्म २-कॉल गर्ल १९७४
Labels:
1974,
Call Girl,
Lata Mangeshkar,
Naqsh Lyallpuri,
Sapan Jagmohan,
Vikram,
Zahira
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment