फिल्म आदमी के तीन गीत आप सुन ही चुके हैं। अब
सुनते हैं चौथा गीत। ये दर्द भरा या यूँ कहिये नैराश्य के
भावों को उभारता गीत है। गायक ने जिस गंभीर तरीके
से उस मूड को उभारा है वो बहुत तारीफ़-ए-काबिल है।
शकील बदायूनी के बोलों को धुन प्रदान की है नौशाद
ने। इस गीत के लिए दिलीप कुमार से उपयुक्त नायक
कौन हो सकता है भला ? एक दुविधा सी है और नायक
अपन आप को नायिका के हवाले करना चाहता है मगर
गीत के अंत में वो अकेला छोड़ देने की ख्वाहिश ज़ाहिर
कर ही देता है।
गीत के बोल:
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
जी चाहे डुबो दो मौजों में या साहिल पे ले जाओ
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
एक तुम ही सहारा हो मेरा जीवन की अँधेरी रातों में
दुनिया की ख़ुशी तक़दीर का ग़म सब कुछ है तुम्हारे हाथों में
अब चाहे इधर ले जाओ मुझे या चाहे उधर ले जाओ
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
मायूस नज़र मजबूर क़दम उजड़ा हुआ आलम है दिल का
जीना भी ये कोई जीना है मुँह देख सकूँ ना मंज़िल का
बीते हुए दिन मिल जाएँ जहाँ मुझे ऐसी डगर ले जाओ -२
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
आँसू न बहाओ मेरे लिए ग़म मुझको अकेले सहने दो
टूटे न तुम्हारा नाज़ुक दिल ये दर्द मुझी तक रहने दो
अब छोड़ दो मुझको राहों में या दूर नगर ले जाओ
मैं टूटी हुई इक नैया हूँ मुझे चाहे जिधर ले जाओ
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Main tooti hui ek naiya hoon-Aadmi 1968
Thursday, 30 June 2011
मैं टूटी हुई एक नैया हूँ-आदमी १९६८
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