बरसों से हम सुनते आये-कुछ मीठा हो जाये। एक विज्ञापन
ने इसको अपने तरीके से सुनाया। गीत और विज्ञापन से आदमी
के फंडे ज़ल्दी क्लीयर होते हैं। अब हम अपने अंदाज़ में कहते
हैं-कुछ हरा भरा हो जाये। गीत में हरियाली भरपूर है और हम
इसे पर्यावरण प्रेमी गीतों की कतार में लगा सकते हैं। हर आदमी
का अपना नजरिया होता है गीत को देखने का। अब भैंस और
बकरी चराने वाला ढूंढेगा कि ऐसी जगह कहाँ है जहाँ गद्देदार
घास हो जिसे जानवर जी भर के चर सकें और चराने वाला उसपर
लोट भी लगा सके। । जंगल पर ज्यादती कर के चूल्हा जलाने वाला
अपने हिसाब से देखेगा गीत को, कहाँ ऐसे पेड़ मिलेंगे जिससे हमेशा
का मुफ्त ईंधन मिलता रहे। अगर फिल्म यश चोपड़ा द्वारा निर्मित/
निर्देशित है तो फिर आपको प्लेन का टिकट लेकर बाहर के देश में
ही ढूंढना पड़ेगा ऐसे स्थानों को।
आपको आज एक युगल गीत सुनवाते हैं सन १९८५ से। शिव हरी
नाम की ख्यातनाम संगीतकार जोड़ी ने इस गीत की धुन बनाई है।
हरी प्रसाद चौरसिया और शिव कुमार शर्मा शास्त्रीय संगीत की बहुत
बड़ी हस्तियाँ हैं। फिल्म सिलसिला से शुरू हुआ उनका फ़िल्मी सफ़र
थोड़े समय ही चला और शायद बोलीवुड की तिकड़मबाजियों और पेंचों
से पाला पढने के बाद उन्होंने फैसला किया होगा कि शास्त्रीय संगीत
पर ध्यान देना ही बेहतर है। वैसे भी फिल्मों में उलझने से उनका
शास्त्रीय संगीत के सफ़र में रुकावटें ज़रूर आई होंगी कुछ समय के
लिए ही सही। ये अटकल और अनुमान मात्र है, हो सकता है वजह
कुछ और हो।
गीत लिखा है शहरयार ने जिन्होंने उमराव जान जैसी फिल्म के गीत
भी लिखे हैं। गीत गाया है किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने।
geet ke bol:
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
धड़कनों को आहटों को
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
धड़कनों को आहटों को
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
देखो अब दुनिया को गौर से
पहले से नई पहले से हसीं
हम तुमको मिलना था मिल गए
क्या ये आसमाँ कौन ये ज़मीं
हम जो देखें तुमको देखें
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
धड़कनों को आहटों को
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
लफ़्ज़ों में जिनको ना कह सके
आँखों से कहें होंठों से सुनें
ख़ुशबू के साए में बैठ के
फूल हम चुनें ख़्वाब हम बुनें
इसके आगे कुछ ना सोचें
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
धड़कनों को आहटों को
साँसें रुक सी गई हैं
हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं
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Hum chup hain-Faasle 1985
Saturday, 11 June 2011
हम चुप हैं -फासले १९८५
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