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Tuesday, 12 April 2011

किसी पत्थर की मूरत से-हमराज़ १९६७

बॉलीवुड ने 'बेबी डॉल' से लगाकर 'उड़द दाल' तक सब कुछ देख लिया है
और शायद दर्शकों ने भी। बस लिफाफे समय के साथ बदलते जाते हैं
ख़त का मजमून वही रहता है जिसका अंदेशा अक्सर होता है।

कुछ अभिनेत्रियों को दर्शक देख कर असमंजस में पढ़ जाते हैं कि उनके
खूबसूरत चेहरे से नज़र हटे तो अभिनय हो रहा है या नहीं इसके बारे में
सोचें। इस पशोपेश में पड़े दर्शक की जब तक कुछ समझ में आये पिक्चर
का "the end" परदे पर प्रकट हो जाता है। जिनके जल्दी समझ आ जाता
है वे मानने लगते हैं कि ऐसी अभिनेत्रियाँ तो साबुन-तेल के विज्ञापनों के
लिए ही सबसे उपयुक्त हैं ।

अब साहब प्रस्तुत गीत एक साहित्यकार-कम-गीतकार की कलम से निकला
है तो हमें भी थोड़ी भाषाई माथापच्ची अवश्य करनी होगी वरन मज़ा नहीं
आएगा।

इस गीत में अभिनय जैसी कोई चीज़ ढूँढने की ज्यादा कोशिश ना ही करें तो
बेहतर होगा। गाने वाला ऐसे हाव भाव दर्शा रहा है जैसे उसे जबरन गाना पढ़
रहा हो , बीच बीच में वो मुस्कुरा के कन्फ्यूज़ कराता है जैसे उसे आनंद आ रहा
हो , और सुनने वाला ऐसे सुन रहा है जैसे बोटनी की क्लास में केमिस्ट्री का
प्रवचन चालू हो गया हो।

अब गीत का विवरण भी हो जाये-गीत गाया है महेंद्र कपूर ने और इसे फिल्माया
गया है अभिनेता सुनील दत्त और नायिका विम्मी पर। गीत साहिर लुधियानवी का
है जिसकी उतनी ही खूबसूरत तर्ज़ के जिम्मेदार हैं संगीतकार रवि।

ये महेंद्र कपूर के सबसे लोकप्रिय गीतों में से एक है। फिल्म हमराज़ के सभी गीत
लोकप्रिय हैं और सुपर-डुपर हिट की श्रेणी में आते हैं। इस सुपर डुपर के बीच
मैं क्यों लपर-लपर कर रहा हूँ भाई



गीत के बोल:

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है इबादत का इरादा है

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है इबादत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से

जो दिल की धडकनें समझे ना आँखों की जुबां समझे
जो दिल की धडकनें समझे ना आँखों की जुबां समझे
नज़र की गुफ्तगूँ समझे ना ज़ज्बों का बयां समझे
नज़र की गुफ्तगूँ समझे ना ज़ज्बों का बयां समझे
उसी के सामने उसकी शिकायत का इरादा है
उसी के सामने उसकी शिकायत का इरादा है

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है इबादत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से

सुना है हर जवान पत्थर के दिल में आग होती है
सुना है हर जवान पत्थर के दिल में आग होती है
मगर जब तक ना छेड़ो शर्मगी परदे में सोती है
ये सोचा है दिल की बात उसके रूबरू कह दें
नतीजा कुछ भी निकले आज अपनी आरज़ू कह दें
हर एक बेजान तकल्लुफ से बगावत का इरादा है
हर एक बेजान तकल्लुफ से बगावत का इरादा है

किसी पत्थर की मूरत से

मोहब्बत बेरुखी से और भड़केगी वो क्या जानें
मोहब्बत बेरुखी से और भड़केगी वो क्या जानें
तबियत इस अदा पे और फडकेगी वो क्या जानें
तबियत इस अदा पे और फडकेगी वो क्या जानें
वो क्या जाने की अपना किस क़यामत का इरादा है
वो क्या जाने की अपना किस क़यामत का इरादा है

किसी पत्थर की मूरत से मोहब्बत का इरादा है
परस्तिश की तमन्ना है इबादत का इरादा है
किसी पत्थर की मूरत से
......................................
Kisi patthar ki moorat se-Hamraaz 1967

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