फरार नाम से कई फ़िल्में बन चुकी हैं। १९५५ से लगा के
सन १९७५ तक हर दस साल के अंतर पर एक फिल्म बनी।
१९८५ में कोई नहीं बनी। चौथी फरार आई ९० के दशक
में। प्रस्तुत श्वेत श्याम युग के गीत को आदिरूप हेमंत कुमार
गीत कहा जा सकता है।
बंगला सिनेमा के अनिल चटर्जी पर इसे फिल्माया गया है।
कैफ़ी आज़मी के लिखे बोलों कि धुन भी हेमंत कुमार ने ही
बनाई है। इस तरह से वे गायक-संगीतकार दोनों ही हैं इस
गीत के। लोग पीते हैं तो लड़खड़ाते ही हैं मगर साथ साथ
वे क्या करते हैं ये हमें गीतों और गजलों के माध्यम से
आसानी से पता चल जाता है। हीरो दुखी क्यूँ है- क्या उसे
अंग्रेजी दारु की बोतल में देसी ठर्रा भर के परोस दिया गया है
या फिर कोई और वजह, जाने के लिए आपको देखना पड़ेगी
फिल्म फरार।
गीत के बोल:
लोग पीते हैं लड़खड़ाते हैं
दिल से दुनिया का ग़म मिटाते हैं
लोग पीते हैं लड़खड़ाते हैं
दिल से दुनिया का ग़म मिटाते हैं
एक हम हैं के तेरी महफ़िल में
प्यासे आते हैं प्यासे जाते हैं
खुश हैं सब और ख़ुशी नहीं मिलती
जिंदा हैं ज़िन्दगी नहीं मिलती
जल रहे हैं चराग में धोखे
जल रहे हैं चराग में धोखे
और कहीं रौशनी नहीं मिलती
रौशनी का फरेब खाते हैं
रौशनी का फरेब खाते हैं
प्यासे आते हैं प्यासे जाते हैं
लोग पीते हैं लड़खड़ाते हैं
महकी महकी हुयी फ़ज़ा को सलाम
बहकी बहकी हुयी हवा को सलाम
इन बहारों से तो भली है खिज़ां
इन बहारों से तो भली है खिजां
इन बहारों की हर अदा को सलाम
जिनमें सौ ज़ख्म मुस्कुराते हैं
जिनमें सौ ज़ख्म मुस्कुराते हैं
प्यासे आते हैं प्यासे जाते हैं
लोग पीते हैं लड़खड़ाते हैं
दिल से दुनिया का ग़म मिटाते हैं
एक हम हैं के तेरी महफ़िल में
प्यासे आते हैं प्यासे जाते हैं
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Log peete hain ladkhadate hain-Faraar 1955
Wednesday, 12 January 2011
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