मुख्या धारा के सिनेमा से अधिकतर फ़िल्मी पत्रकारों, लेखकों
और नए नवेले ज्यादा प्याज खाने वाले चिट्ठाकारों का मतलब
होता बड़े बड़े निर्देशकों की फ़िल्में। अब उनकी सूची पहले से ही
बंधी हुई होती ही तो वे महिमामंडन भी गिने चुने लोगों का किया
करते हैं। कुछ का हाल तो ये है कि वे पोंडीचेरी के प्राकृतिक सौंदर्य
पे साधिकार लिखते हैं और वहां गुलमोहर और चीड के वृक्षों की
संख्या पर टिप्पणी करते हैं। अमूमन संगीत प्रेमी भी अधिकांश
अवसरों पर अपने अपने फैवरेट ' पिटारी बाई' और 'भोंगड़े भाई'
के आख्यान में ही व्यस्त दिखाई देते हैं। ऐसे में आम जनता को
ये कैसे पता चलेगा कि इतिहास की तह में क्या क्या छुपा हुआ है ।
एक तो इतिहास वो होता है जो बंद कमरे में कुछ लोगों की सीमित
जानकारी के आधार पर लिखा जाता ही जिसमे शब्द जाल ज्यादा
होता है तथ्य कम, कागज़ ज़रूर। ऐसी ऐतिहासिक किताबों के मोटे
मोटे और चिकने से होते हैं। कीमत ऐसी कि आम आदमी की सोच
के बाहर हो। ऐसी कुछ किताबें पढ़ कर भी सयाने लोग मसाला लिखा
करते हैं । दूसरा इतिहास वो जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता है ।
ऐसा इतिहास भी कम लोगों की पहुँच में होता है। अब मान लीजिये
किसी लेखक ने अपनी आत्मकथा में ये तथ्य छुपाया कि उसकी पीठ में
एग्ज़ीमा था, तो वो आपको उसके निकटस्थ निवासियों से मालूम
पढ़ जायेगा। इतनी फुर्सत किसी को नहीं है जो वास्तविकता जाने
के लिए वर्जिश करे अतः जो सामने प्रस्तुत है उसी को सत्य मानते
हुए इतिश्री कर ली जाती है।
आज एक गीत आपको सुनवाते हैं जो गुमनाम सी अनदेखी फिल्म
कानून और मुजरिम से है- शाम रंगीन हुई है। इस युगल गीत को
गाया है सुरेश वाडकर और उषा मंगेशकर ने। १९८१ में आई फिल्म
कानून और मुजरिम के इस गीत के अलावा फिल्म के बाकी गीत
आपको एल पी रिकॉर्ड के ऊपर ही मिलेंगे।
ये एक ऐसा गीत है जिसकी फरमाइश बहुत आया करती रेडियो पर।
गाँव-गाँव से, मजनू का टीला से और झुमरी तलैया से। बरकाकाना का
नाम भी कभी कभार सुनाई दे जाता । ये बरकाकाना नामक जगह बिहार
से अलग होकर बने राज्य झारखण्ड में मौजूद है ।
सन १९८१ में पुराने दौर के कुछ संगीतकार सक्रिय थे। ख़य्याम ने तो
फिल्म कभी कभी की रेकोर्ड तोड़ सफलता के बाद काफी फिल्मों में संगीत
दिया मगर सी अर्जुन फिल्म 'जय संतोषी माँ' की अपार सफलता के
बावजूद हिंदी फिल्म क्षेत्र में कुछ खास नहीं कर पाए या यूँ कहें उनको
करने नहीं दिया गया ।
सुनिए कैफ़ी आज़मी का लिखा ये गीत जो आज भी सुनने में वही आनंद
देता है जो सन ८१ में दिया करता था।
गीत के बोल:
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
पास हो तुम मेरे दिल के मेरे आँचल की तरह
मेरी आँखों में बसे हो मेरे काजल की तरह
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
आसमान है मेरे अरमानों का दर्पण जैसे
आसमान है मेरे अरमानों का दर्पण जैसे
दिल यूं धडके मेरा खनके तेरे कंगन जैसे
मस्त हैं आज हवाएं मेरी पायल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
मेरी हस्ती पे कभी यूं कोई छाया ही ना था
मेरी हस्ती पे कभी यूं कोई छाया ही ना था
तेरे नज़दीक मैं पहले कभी आया ही ना था
मैं हूँ धरती की तरह तुम किसी बादल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे काजल की तरह
आ आ आ, शाम रंगीन हुयी है तेरे आँचल की तरह
ऐसी रंगीन मुलाक़ात का मतलब क्या है
ऐसी रंगीन मुलाक़ात का मतलब क्या है
इन छलकते हुए जज़्बात का मतलब क्या है
आज हर दर्द भुला दो किसी पागल की तरह
सुरमई रंग सजा है तेरे आँचल की तरह
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
पास हो तुम मेरे दिल के मेरे आँचल की तरह
शाम रंगीन हुई है तेरे आँचल की तरह
पास हो तुम मेरे दिल के मेरे आँचल की तरह
Wednesday, 1 December 2010
शाम रंगीन हुई है -कानून और मुजरिम १९८१
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