७० के दशक में सन ७५ की ढिशुम ढिशुम वाली शोले
के बाद पब्लिक ने बहुत से ढिच्क्युन ढिच्क्युन आवाजों
वाली मार धाड़ भरी फ़िल्में देखी। उसी के साथ साथ
कुछ साफ़ सुथरी और पारिवारिक घरेलू किस्म की फिल्में
भी बनती रहीं। सन १९७६ में आई और गाँव की प्रष्ठभूमि
पर बनी चितचोर भी ऐसी ही एक फिल्म है। सीधी साधी
कहानी और कर्णप्रिय गीतों वाली इस फिल्म को जनता
ने बेहद पसंद किया। आइये इस फिल्म का लोकप्रिय गीत
सुनें जो येसुदास का गाया हुआ है। बोल और संगीत दोनों
रवीन्द्र जैन के हैं। गीत से एक नया शब्द सीखने को मिला
-चन्द्रमधु ।
गीत के बोल:
गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा
मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे
उस पर रूप तेरा सादा
चन्द्रमधु आधा आधा जवाँ रे
गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा
मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे
आ के यहाँ रे
जी करता है मोर कि पैरों में
पायलिया पहना दूँ
कुहू कुहू गाति कोयलिया को
फूलों क गहना दूँ
यहीं घर अपना बनाने को, पंछी करे देखो
तिनके जमा रे तिनके जमा रे
गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा
मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे
आके यहाँ रे
रंग बिरंगे फूल खिले हैं
लोग भी फूलों जैसे
आ जाये इक बार यहाँ जो
जायेगा फिर कैसे
झर झर झरते हुए झरने, मन को लगे हरने
ऐसा कहाँ रे ऐसा कहाँ रे
उसपर रूप तेरा सादा
चन्द्रमधु आधा, आधा जवाँ रे
आधा जवाँ रे
परदेसी अन्जान को ऐसे
कोई नहीं अपनाता
तुम लोगों से जुड़ गया जैसे
जनम जनम का नाता
अपने धुन में मगन डोले, लोग यहाँ बोले
दिल की ज़बाँ रे दिल की ज़बाँ रे
गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा
मैं तो गया मारा आ के यहाँ रे
उसपर रूप तेरा सादा
चन्द्रमधु आधा
आधा जवाँ रे
Friday, 3 December 2010
गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा-चितचोर १९७६
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