सन १९९२ से अगला मधुर गीत पेश है फिल्म वंश का। इसे गाया
है लता मंगेशकर और एस. पी. बालसुब्रमण्यम ने। बोल समीर के हैं
और संगीत आनंद मिलिंद का। इसका फिल्मांकन भी लुभावना है।
समीर के बोल भी लाजवाब हैं-'बाँहों में धंस लेने दे'! और
तो और गीत में दिखने वाली बकरियां भी सुन्दर हैं। किसी ने कमेन्ट
में लिखा है कि ये गीत राग पूरिया धनश्री पर आधारित है। मान लेते हैं
जब तक कोई शास्त्रीय संगीत प्रेमी टीका टिपण्णी न करे।
फिल्म एक प्रसिद्ध दक्षिण भारतीय फिल्म का रिमेक है और इसके गीतों
की धुनें भी उक्त फिल्म से इलयाराजा की धुनों की रीसाइकलिंग है।
गीत के बोल:
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
मेरे मन को महकाए
मेरे मन को महकाए तेरे मन की कस्तूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
मेरे मन को महकाए
मेरे मन को महकाए तेरे मन की कस्तूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
हो ओ, आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
महकी हवायें उड़ता आंचल
लट घुंघराले काले बादल
हाँ हाँ हाँ हाँ
महकी हवायें उड़ता आंचल
लट घुंघराले काले बादल
प्रेम सुधा नैनों से बरसे
पी लेने को जीवन तरसे
बाहों में धंस लेने दे
प्रीत के चुम्बन देने दे
बाहों में धंस लेने दे
प्रीत के चुम्बन देने दे
इन अधरों से छलक न जाये
इन अधरों से छलक न जाये
यौवन रस अन्गूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
सुंदरता का बहता सागर
तेरे लिये है रूप के बादल
सुंदरता का बहता सागर
तेरे लिये है रूप के बादल
इन्द्रधनुश के रंग चुराऊँ
तेरी ज़ुल्मी माँग सजाऊँ
दो फूलों के खिलने का
वक़्त यही है मिलने का
दो फूलों के खिलने का
वक़्त यही है मिलने का
आ जा मिल के आज मिटा दें
आ जा मिल के आज मिटा दें
थोड़ी सी ये दूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
मेरे मन को महकाए
मेरे मन को महकाए तेरे मन की कस्तूरी
आ के तेरी बाहों में हर शाम लगे सिन्दूरी
...................................
Aa ke teri bahon mein-Vansh 1992
Tuesday, 26 July 2011
आ के तेरी बाहों में-वंश १९९२
Labels:
1992,
Anand Milind,
Lata Mangeshkar,
Sameer,
SP Balasubramaniam,
Vansh
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment