एक संगीतप्रेमी ने पूछा था-आप कैसे गीत सुनते हैं।
अमूमन इस सवाल का जवाब मैं कुछ लोकप्रिय गीत
गिनवा कर दे देता हूँ। कुछ हद तक ठीक भी है क्युंकि
मैं हर तरह का संगीत सुनना पसंद करता हूँ। अब वो
चाहे १५० लोगों के ओर्केस्ट्रा से भरा हुआ कोई संगीत
का टुकड़ा हो या डालडे के तीन के डब्बे से बने इकतारे
के साथ कोई प्रलाप। सब सुन लेता हूँ। इन सबके बीच
पोप, कॉर्न, रॉक, सॉइल, मेटल, प्लांट, एनिमल सब तरह
का संगीत आ जाता है।
वास्तविकता में कैसे गीत ज्यादा सुनता हूँ-उसका एक
नमूना पेश है आपके लिए-फिल्म नौबहार(१९५२) का
ये गीत जो नलिनी जयवंत पर फिल्माया गया है और
लता मंगेशकर ने गाया है। कवि शैलेन्द्र के लिखे बोलों
को सुरों में ढाला है रोशन ने। गीत का ऑडियो उपलब्ध
है सुनने के लिए और विडियो आप देखना चाहें तो
इस लिंक को क्लिक कर लीजिये। विडियो
मुझे ज़्यादातर दर्द भरे और सॉफ्ट गीत पसंद हैं। दर्द भरे
और रोतले गीतों में फर्क है। कुछ तो गीत ही रोते हुए से
प्रतीत होते हैं। इस पर ज्यादा चर्चा नहीं वरना सन
१९००-१९३५ के दौर के गीत सुनने वाले मेरे पीछे लग
जायेंगे।
नलिनी जयवंत के पास भी जादुई ऑंखें थीं। अक्सर
देखा गया है कि जिन नायक नायिकाओं की ऑंखें
भावाभिव्यक्ति में समर्थवान होती हैं वही ज्यादा
लोकप्रिय और सफल होते हैं, कुछ अपवाद हमेशा
मिलेंगे आपको, जैसे अजय देवगन आँखों से बढ़िया
अभिनय कर लेते हैं मगर नंबर एक की कुर्सी पर
कोई और बैठा है।
गीत के बोल:
भटके हुए मुसाफिर मंजिल को ढूंढते हैं
दिल खो गया हमारा हम दिल को ढूंढते हैं
वो पास नहीं मजबूर है दिल हम आस लगाये बैठे हैं
उम्मीद भरे अरमानों का तूफ़ान छुपाये बैठे हैं
जाओ के वही बेदर्द हो तुम
जाओ के वही बेदर्द हो तुम
वादों का जिन्हें कुछ भास् नहीं
हम हैं के तुम्हारे वादों पर
दुनिया को भुलाये बैठे हैं
बरबाद है दिल उजड़ा है चमन,
बेरंग हुई फूलों की खबन
बरबाद है दिल उजड़ा है चमन,
बेरंग हुई फूलों की खबन
बेकार उलझते काटों से
दामन को बचाये बैठे हैं
वो पास नहीं मजबूर है दिल
हम आस लगाये बैठे हैं
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Wo paas nahin majboor hai dil-Naubahaar 1952
Wednesday, 8 December 2010
वो पास नहीं मजबूर है दिल-नौबहार १९५२
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