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Monday, 3 January 2011

ये दिल नहीं है-आबरू १९६८

फिल्म आबरू के ३ गीत आपको सुनवा चुके हैं। अब सुनते हैं एक
गीत जो शायद ही आपको कभी सुनाई दिया हो। इस गीत के बोल
अच्छे हैं इसलिए इसको एक बार ज़रूर सुन लिया जाए। जी एस रावल
के लिखे गीत की तर्ज़ बनाई है सोनिक ओमी ने। गायक हैं रफ़ी। कोई
दीपक कुमार साहब पर इसे फिल्माया गया है। गीत में आपको विम्मी
नाम की नायिका भी दिखाई देंगी।



गीत के बोल:


ये दिल नहीं कि जिसके सहारे जीते हैं
लहू का जाम है जो सुबह-ओ-शाम पीते हैं

ये दिल नहीं है

छुपाया लाख मगर इश्क़ है नहीं छुपता
छुपाया लाख मगर इश्क़ है नहीं छुपता
ये अश्क़ आँख में आया हुआ नहीं रुकता
कि आग लगती है
कि आग लगती है जब आँसुओं को पीते हैं
लहू का जाम है जो सुबह-ओ-शाम पीते हैं

ये दिल नहीं है

कभी क़रार न आएगा हमको जीने से
कभी क़रार न आएगा हमको जीने से
इलाज ज़हर का होता है ज़हर पीने से
कि सर पे मौत का
कि सर पे मौत का साया है फिर भी जीते हैं
लहू का जाम है जो सुबह-ओ-शाम पीते हैं

ये दिल नहीं है
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जो अंतरा विडियो से गयाबं है वो इस प्रकार है:

तड़प-तड़प के निकालेंगे दिल के अरमाँ हम
तड़प-तड़प के निकालेंगे दिल के अरमाँ हम
करेंगे रंज से पैदा ख़ुशी के समाँ हम
कि ग़मों की नोक से
कि ग़मों की नोक से दिल के ज़ख़्म सीते हैं
लहू का जाम है जो सुबह-ओ-शाम पीते हैं

ये दिल नहीं कि जिसके सहारे जीते हैं
ये दिल नहीं कि जिसके सहारे जीते हैं

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Ye dil nahin hai-Aabroo 1968

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