हिंदी सिनेमा के प्रथम दौर से एक गीत चुना है आज आपके लिए।
फिल्म का नाम है जागीरदार । सन १९३७ की इस फिल्म का निर्देशन
महबूब खान (मदर इंडिया फेम)ने किया था।
अभिनेता मोतीलाल और अभिनेत्री माया बनर्जी ने ये गीत गाया है
और इस पर अभिनय भी किया है। अफ़सोस, इसकी विडियो क्लिप
उपलब्ध नहीं है दर्शन हेतु। मोतीलाल अपनी कातिल मुस्कराहट
के लिए विख्यात थे।
गीत जिया सरहदी ने लिखा और इस गीत को स्वरों में बांधा है
अनिल बिश्वास ने। बतौर संगीतकार अनिल बिश्वास के लिए ये
पहली बड़ी हिट फिल्म थी।
आज के दौर में अगर आप किसी से कहेंगे 'नदी किनारे बैठ के आओ'
तो वो आपको टेडी नज़र से देखेगा-कारण-लगभग सभी नदी के
किनारे जनता ने आबाद कर दिए हैं और सुबह के नित्य कर्म से
लेकर शाम के नित्य कर्म तक सब कुछ होता है किनारे पर।
कुछ ही नदियाँ आबादी क्षेत्र में जनता के कहर से बची हुई हैं।
गीत की कुछ पंक्तियाँ इटालिक फॉण्ट में हैं उनपर नज़र डालें। मुझे
बोल कुछ गड़बड़ लगते हैं। ज्यादा बारीक कान वाले कृपया सहायता
करें।
गीत के बोल:
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
चुल्लू भर भर पानी के बूँदें
चुल्लू भर भर पानी के बूँदें
लो भर भर बरसायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
सुख बन जब बन के राजा
सुख बन जब बन के राजा
पवन जाग उजाली
पवन जाग उजाली
मिल जुल कर फिर बन में हम तुम
मिल जुल कर फिर बन में हम तुम
अपना राज चलायें
अपना राज चलायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
कागज़ की एक नाव बना कर
जल में उसे चलायें
कागज़ की एक नाव बना कर
जल में उसे चलायें
दुनिया की तस्वीर बना कर
दुनिया की तस्वीर बना कर
दुनिया को दिखलायें
दुनिया को दिखलायें
नदी किनारे बैठ के आओ
फिर से जी बहलायें
Monday, 22 November 2010
नदी किनारे बैठ के आओ-जागीरदार १९३७
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