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Monday 30 January 2012

बुलबुला रे बुलबुला -आंटी नंबर १ - १९९८

चौदह साल आगे चलते हैं फिल्म कैदी के गीत के बाद। चाल- ढाल वही है
संगीत की, गति धीमी हो गई है, इसमें महान गायक नहीं हैं मगर गायकों की
अगली पीढ़ी से दो हस्तियाँ ज़रूर हैं-अलका याग्निक और उदित नारायण।
गीतकार हैं अगली पीढ़ी के-अनजान पुत्र समीर और संगीतकार हैं चित्रगुप्त
पुत्र द्वय आनंद-मिलिंद ।

बप्पी लहरी की कमी कुछ हद तक अगली संगीतकार पीढ़ी ने महसूस नहीं
होने दी उसकी एक बानगी है ये गीत। वैसे ये गीत किसी दक्षिण भारत की धुन
से प्रेरित सा लगता है सुनने में। गौरतलब है कि गीत में नायक गोविंदा से ज्यादा
बाकी के कलाकार हिल रहे हैं। हो सकता है नायक की मांग रही हो-गीतों में मैं
ज्यादा हिलता डुलता आया हूँ, अतः अब बाकी के कलाकारों को हिलने डुलने का
मौका दिया जाये।

भला हो ऐसे फ़िल्मी गीतों का जिनकी बदौलत बहुत से कलाकारों का जीविकोपार्जन
होता है। कम से कम १०० सहायक कलाकार तो ज़र्रोर ही होंगे इस गीत में।




बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
खो के मेरी आशिकी में सारी दुनिया को भुला

बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
खो के मेरी आशिकी में सारी दुनिया को भुला

बुलबुला रे बुलबुला दिलरुबा कह कर बुला
साथिया तेरे लिए तो दिल का दरवाज़ा खुला

बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
खो के मेरी आशिकी में सारी दुनिया को भुला

मनचली इन वादियों में खुशबुएँ हैं प्यार की
कर दे पूरी आज सारी ख्वाहिशें दिलदार की
कह रहे हैं ये नज़ारे रुत यही दीदार की
ना रहेगी अब अधूरी आरजू मेरे यार की

बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
खो के मेरी आशिकी में सारी दुनिया को भुला

बुलबुला रे बुलबुला दिलरुबा कह कर बुला
साथिया तेरे लिए तो दिल का दरवाज़ा खुला

गोरा गोरा रूप तेरा काले काले बाल हैं
होंठ तेरे हैं रसीले फूल जैसे गाल हैं
मैं दीवानी हो रही हूँ और ना तारीफ़ कर
बढ़ रही है बेकरारी डाल ना ऐसी नज़र

बुलबुला रे बुलबुला मुझको बाहों में सुला
खो के मेरी आशिकी में सारी दुनिया को भुला

बुलबुला रे बुलबुला दिलरुबा कह कर बुला
साथिया तेरे लिए तो दिल का दरवाज़ा खुला
....................................
Bulbula re bulbula-Aunty No. 1 1998

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