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Monday, 7 November 2011

गंगा बहती हो क्यूँ-भूपेन हजारिका

भूपेन हजारिका हमारे बीच नहीं रहे मगर उनकी आवाज़ का जादू आने
वाले कई दशकों तक कायम रहेगा। फ़िल्मी, ग़ैर फ़िल्मी, शास्त्रीय और
उप शास्त्रीय गायकों के बीच उन्होंने अपनी अलग पहचान बना ली थी।

सही मायने में जो लीक से हट कर संगीत है उसमें भूपेन हजारिका का
संगीत शामिल है। भूपेन हजारिका की आवाज़ में बुलंदी के साथ साथ एक
विशिष्ट गूँज शामिल है जो श्रोता को चकित करती है।

आइये सुनें उनका एक प्रसिद्द गीत जिसे हमने कई बार दूरदर्शन पर सुना है
और देखा है। गीत के रचयिता हैं पंडित नरेन्द्र शर्मा।




गीत के बोल:

विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार
नि:शब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्लज्ज भाव से , बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार,
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को,
सबल संग्रामी,गमग्रोग्रामी, बनाती नहीँ हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
नैतिकता नष्ट हुई, मानवता भ्रष्ट हुई,
निर्ल्लज्ज भाव से, बहती हो क्यूँ ?

इतिहास की पुकार, करे हुंकार गंगा की धार,
निर्बल जन को, सबल संग्रामी, गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?
इतिहास की पुकार, करे हुंकार,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक` मौन हो क्यूँ ?
व्यक्ति रहे, व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित, निष्प्राण समाज को तोड़ती न क्यूँ ?
ओ गंगा की धार, निर्बल जन को, सबल संग्रामी,
गमग्रोग्रामी,बनाती नहीं हो क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?

अनपढ जन, अक्षरहीन, अनगिन जन,
अज्ञ विहिन नेत्र विहिन दिक मौन हो कयूँ ?
व्यक्ति रहे , व्यक्ति केन्द्रित, सकल समाज,
व्यक्तित्व रहित,निष्प्राण समाज को तोडती न क्यूँ ?

विस्तार है अपार, प्रजा दोनो पार, करे हाहाकार
निशब्द सदा ,ओ गंगा तुम, बहती हो क्यूँ ?
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Ganga behti ho kyun-Bhupen Hazarika-Non film song

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