साहिर का है अंदाज़-ए-बयां और। ख़वातीनों हाज़रात, महबूब
से किनारा करने का खुशनुमा ख्याल और किस के दिमाग में
आ कर कागज़ पर उतर सकता है। किनारा करने की बात पर
रज़ामंदी मांगी जा रही है, समाज की बंदिशें या फिर कोई और
वजह ऐसा करने को प्रेरित कर रही हैं जानने के लिए आपको
बहू बेगम फिल्म एक बार ज़रूर देखना पड़ेगी।
साहिर के गीतों से फिल्म के निर्देशक का काम कभी कभी बहुत
आसान हो जाया करता था। आम दर्शक तो धुन से ही आनंद उठा
लिया करता लेकिन दिमाग खपाने वाले दर्शक गीत की गहराई
में उतर कर नायक की करतब-ए-एक्टिंग को गीत के शब्दों और
भावों से मिलाने की असफल कोशिश में लग जाते। साहिर के गीतों
पर कुछ ही संजीदा कलाकारों ने बढ़िया अभिनय किया है।
कमबख्त दिल तो मानता नहीं है क्या किया जाये, इश्क की
खुमारी दिल पर झाड फानूस की धूल माफिक चिपकी रहती है,
कुछ करने या ना करने की जायज़ वजहें होना ज़रूरी है। अब
जुदा हो ही रहे हैं तो सारे अरमान पूरे करते चलें और ये जुमला
दोहराते चलें-किनारा कर लें।
प्रेम त्रिकोण पर आधारित इस फिल्म में कई यादगार गीत हैं।
ये गीत थोड़ा कम सुना जाता है और गीतों की तुलना में। गीत
मधुर है इसलिए हमने इसे पहले चुना है सुनने के लिए।
गीत के बोल:
लोग कहते हैं कि हम तुमसे किनारा कर लें
तुम जो कह दो तो सितम ये भी गवारा कर लें
लोग कहते हैं
तुमने जिस हाल-ए-परेशानी से निकला था हमें
आसरा दे के मोहब्बत का संभाला था हमें
सोचते हैं के वही
सोचते हैं के वही हाल दुबारा कर लें
तुम जो कह दो तो सितम ये भी गवारा कर लें
लोग कहते हैं
यूँ भी अब तुमसे मुलाक़ात अब नहीं होने की
मिल भी जाओ
मिल भी जाओ तो कोई बात नहीं होने की
आखिरी बार बस अब
आखिरी बार बस अब जिक्र तुम्हारा कर लें
तुम जो कह दो तो सितम ये भी गवारा कर लें
लोग कहते हैं
आखिरी बार ख्यालों में बुला लें तुमको
आखिरी बार कलेजे से लगा लें तुमको
और फिर अपने तड़पने
और फिर अपने तड़पने का नज़ारा कर लें
तुम जो कह दो तो सितम ये भी गवारा कर लें
लोग कहते हैं कि हम तुमसे किनारा कर लें
तुम जो कह दो तो सितम ये भी गवारा कर लें
लोग कहते हैं
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Log kehte hain ki hum-Bahu Begum 1967
Wednesday, 22 June 2011
लोग कहते हैं कि हम-बहू बेगम १९६७
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