नर्गिस और राजकपूर की जोड़ी की ये तीसरी फिल्म थी। इसमें
राज कपूर के साले साहब-प्रेमनाथ भी हैं उनके साथ। बरसात
फिल्म ने फिल्म सिनेमा को नए समीकरण दिखाए तो कुछ
समीकरण बदले भी। बदलते युगों के युग्म पर कुछ घटनाएँ
होती हैं कुछ वैसी ही यह फिल्म है जिसे हम ५० के दशक में
हिंदी सिनेमा में होने वाले बदलाव का बिगुल जैसा कह सकते हैं।
ऐसी उस दौर की कुछ और प्रतिनिधि फ़िल्में भी हैं जिनपर चर्चा
आगे उन फिल्मों के गीतों की प्रस्तुति के समय हम करेंगे ।
फ़िल्म बरसात से तीसरा गीत पेश है। नर्गिस के ऊपर फिल्माया
गया अधिक कर्णप्रिय गीत सन १९४९ से सुनने वालों को आनंद दे
रहा है। एक दर्द भरा गीत जिसका फिल्मांकन भी बढ़िया है आपको
अंत तक बांधे रखेगा । ऐसे गीतों में किसी रंग की आवश्यकता नहीं
होती, ये तो श्वेत श्याम में भी ऐसा कमाल दिखाते हैं कि देखने वाला
भूल जाता है कि वो श्वेत श्याम फिल्म देख रहा है या रंगीन।
हुस्नलाल भगतराम के संगीत की जो ध्वनियाँ हैं वैसी ही साजों की
आवाजें इस गीत में भी हैं मगर थोड़ी तेज़ गति में ।
गीत के बोल:
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
मेरे बलम
मेरे बलम मुझको ना भुलाना
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
तुझसे बिछड़ कर दूर हुई
मिलने से मजबूर हुई
तुझसे बिछड़ कर दूर हुई
मिलने से मजबूर हुई
रो-रो के दिल ने तुझको पुकारा
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
तुझसे मिलन की आस लगी
नैना रस की प्यास लगी
नैना रस्ते
मुझको है तेरा गम भी न्यारा
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
पंख लगे उड़ जाऊं मैं
लेकिन कैसे आऊँ मैं
पंख लगे उड़ जाऊं मैं
लेकिन कैसे आऊँ मैं
बेबस हुयी किस्मत ने मारा
अब मेरा कौन सहारा
अब मेरा कौन सहारा
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Ab mera kaun sahara-Barsaat 1949
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