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Saturday 28 May 2011

तेरी गठरी में लागा चोर-धूप छाँव १९३५

आपको पूर्व में फिल्म धूप-छाँव का एक गीत सुनवाया जा चुका है।
अब सुनिए एक और प्रचलित गीत जिसके किशोर कुमार वाले
तर्जुमे आप ज़रूर सुन चुके होंगे। गीत लिखा है पंडित सुदर्शन ने
और इसकी धुन बनाई है ४० के दशक के हिंदी सिने-संगीत के
स्तम्भ राय चन्द्र बोराल ने। के. सी. डे की बुलंद आवाज़ वाला
ये गीत पुराने गीतों के प्रेमी आज भी उतने ही चाव से सुना करते
हैं जितना वे अपनी जवानी के दिनों में सुना करते थे। परदे पर
आप स्वयं के. सी. डे को गाते हुए देखेंगे। ऐसे प्रेरणादायी गीत
आजकल के युग में दुर्लभ से हैं इसलिए इस गीत को आप संगीत
की धरोहर के रूप में सुनिए। दृष्यावली में एक भद्र पुरुष और उसका
चमचा दिखाई दे रहे हैं उनके नाम मैं नहीं जनता।




गीत के बोल:

तेरी गठरी में लागा चोर
मुसाफिर जाग ज़रा, जाग ज़रा
तेरी गठरी में लागा चोर
मुसाफिर जाग ज़रा, जाग ज़रा

आज ज़रा सा फ़ितना है ये
तू कहता है कितना है ये
आज ज़रा सा फ़ितना है ये
तू कहता है कितना है ये
दो दिन में ये बढ़कर होगा मुंहफट और मुंहजोर
दो दिन में ये बढ़कर होगा मुंहफट और मुंहजोर
मुसाफिर जाग ज़रा

तेरी गठरी में लागा चोर
मुसाफिर जाग ज़रा, जाग ज़रा

नींद में माल गँवा बैठेगा
अपना आप लुटा बैठेगा
नींद में माल गँवा बैठेगा
अपना आप लुटा बैठेगा
फिर पीछे कुछ नहीं बनेगा
फिर पीछे कुछ नहीं बनेगा
लाख मचाये शोर, शोर
मुसाफिर जाग ज़रा
तेरी गठरी में लागा चोर
मुसाफिर जाग ज़रा, जाग ज़रा

तेरी गठरी में लागा चोर, चोर
..................................
Teri gathri mein laaga chor-Dhoop Chhaon 1935

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