सन १९४६ की घूंघट से एक गीत सुना आपने, अब सुनवाते हैं
सन १९६० की घूंघट फिल्म से. पिछला गीत रफ़ी का युगल गीत
था. इसमें वे अकेले ही गा रहे हैं. शकील बदायुनी के बोलों पर
संगीतकार रवि ने एक आकर्षक धुन बनायीं है. गीत में बीना राय
दिखाई देंगी आपको परेशां सी. थोड़ी देर के बाद प्रदीप कुमार भी
दिखलाई देने लगते हैं. वो भी कुछ परेशां से हैं . गीत पार्श्व में
बज रहा है. धीरे धीरे तीसरा चरित्र भी परदे पर आता है-वो हैं
नायिका आशा पारेख.
गीत के बोल:
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
पास रह कर भी हैं कितनी दूरियाँ, दूरियाँ
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
कुछ अँधेरे में नज़र आता नहीं
कोई तारा राह दिखलाता नहीं
जाने उम्मीदों की मंज़िल है कहाँ
जाने उम्मीदों की मंज़िल है कहाँ, हाय
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
शमा के अंजाम की किसको ख़बर
ख़त्म होगी या जलेगी रात भर
शमा के अंजाम की किसको ख़बर
ख़त्म होगी या जलेगी रात भर
जाने ये शोला बनेगी या धुआँ
जाने ये शोला बनेगी या धुआँ, हाय
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
पास रह कर भी हैं कितनी दूरियाँ, दूरियाँ
हाय रे इन्सान की मजबूरियाँ
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Haye re insaan ki majbooriyan-Ghoonghat 1960
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